Nirvan Upnishad (निर्वाण उपनिषद)
₹466.00
Author | Osho |
Publisher | Divyansh Publications |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2015 |
ISBN | 978-93-84657-45-1 |
Pages | 312 |
Cover | Hard Cover |
Size | 16 x 3 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | DP0007 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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निर्वाण उपनिषद (Nirvan Upnishad) बहुत अद्भुत है निर्वाण उपनिषद। इस पर हम यात्रा शुरू करते हैं और यह यात्रा दोहरी होगी। एक तरफ मैं आपको उपनिषद समझाता चलूंगा और दूसरी तरफ आपको उपनिषद कराता चलूंगा। क्योंकि समझाने से कभी कुछ समझ में नहीं आता, करने से ही कुछ समझ में आता है। करेंगे तभी समझ पाएंगे। इस जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, उसका स्वाद चाहिए, अर्थ नहीं। उसकी व्याख्या नहीं, उसकी प्रतीति चाहिए। आग क्या है, इतने से काफी नहीं होगा, आग जलानी पड़ेगी। उस आग से गुजरना पड़ेगा। उस आग में जलना पड़ेगा और बुझना पड़ेगा। तब प्रतीति होगी कि निर्वाण क्या है।निर्वाण उपनिषद तो समाप्त हो जाता है, लेकिन निर्वाण निर्वाण उपनिषद के समाप्त होने से नहीं मिल जाता है। निर्वाण उपनिषद जहां समाप्त होता है, वहीं से निर्वाण की यात्रा शुरू होती है।
इस आशा के साथ अपनी बात पूरी करता हूं कि आप निर्वाण की यात्रा पर चलेंगे, बढ़ेंगे। और यह भरोसा रखकर मैंने ये बातें कही हैं कि आप सुनने को, समझने को तैयार होकर आए थे। मैंने जैसा कहा है और जो कहा है, उसमें अगर रत्तीभर भी अपनी तरफ से जोड़ने का खयाल आए, तो स्मरण रखना कि वह अन्याय होगा – मेरे साथ ही नहीं, जिसने निर्वाण उपनिषद कहा है, उस ऋषि के साथ भी। आपके ध्यान करने की चेष्टा ने मुझे भरोसा दिलाया है कि जिनसे मैंने बात कही है, वे कहने योग्य थे।
निर्वाण उपनिषद समाप्त !
निर्वाण की यात्रा प्रारंभ !!
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु :
* निर्वाण उपनिषद – अव्याख्य की व्याख्या
* यात्रा-अमृत की, अक्षय की अजपा गायत्री और विकार-मुक्ति का महत्व
* आनंद और आलोक की अभीप्सा
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