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101 Devi Devtao Ki Aarti Sangrah (१०१ देवी देवताओं की आरती संग्रह)

180.00

Author -
Publisher Shri Master Khiladilal Shitla Prashad
Language Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 160
Cover Hard Cover
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SVP0001
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Description

१०१ देवी देवताओं की आरती संग्रह (101 Devi Devtao Ki Aarti Sangrah) जीवन में एक समय ऐसा भी आता है जब पैसा, पद, रिश्ते, मित्र, यश या शस्त्र कोई काम नहीं आता। निराशा में डूबा मन अकेला छूट जाता है, अकसर ऐसे क्षणों में आदमी भीतर की ओर मुड़ता है, स्थूल की जगह सूक्ष्म, दृश्य की जगह अदृश्य से जुड़ता है। इसे आत्मा के जागरण का क्षण कहते हैं। जिन साधनों के द्वारा ईश्वर से बिछड़ा और अनाथ हुआ जीव फिर प्रभु की ओर पग बढ़ाता है उसे उपासना या भक्ति कहा जाता है।

भक्ति भारतीय ऋषियों की अन्यतम अद्वितीय खोज है। जिसमें मनुष्य आत्मतत्व की पहचान करके सिर्फ प्रभु के नाम का गुणगान करता है और बदले में मोक्ष तक की कामना नहीं करता। चेतना की अधोगति का नाम अगर तृष्णा है तो चेतना के चरम शिखर का नाम भक्ति है। जहाँ सारे सांसारिक विशेषण गिर जाते हैं और शेष रह जाती है एक मस्ती, एक नशा, एक पागलपन।

आरती का तात्पर्य

भागवतकार ने नवधा भक्ति को श्रेष्ठ माना है जिसमें श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वन्दनादि के बाद होती है आरती ! पूजन में जो त्रुटि रह जाती है उसकी पूर्ति करती है आरती !! आरती संस्कृत के आरति शब्द का पर्याय है जिसका अर्थ होता है- विराम देना, रुकना, ठहरना।

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