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Chandrakala Natika (चन्द्रकला नाटिका)

64.00

Author Dr. Acharya Dhurandhar Pandey
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 274
Cover Paper Back
Size 12 x 3 x 19 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0106
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Description

चन्द्रकला नाटिका (Chandrakala Natika) काव्येषु नाटक रम्यम् यह विद्वानों का निसर्गभाव निर्गत होता है और नाटक कवित्व का चरमोत्कर्ष बन जाता है। इसमें नाना भाव, अवस्थाएँ एवं लोकचरित के कारण अनेक रसों का आस्वाद एकत्र उपलब्ध हो जाता है। संस्कृतवाङ्मय की महत्त्वपूर्ण विधा नाट्यकला एवं संगीत-कला को अनेक ऋषियों, मुनियों एवं आचार्यों ने अपनी अकाट्य प्रतिभा, अनुपम मनीषा, अलौकिक पाण्डित्य एवं असाधारण विवेचना कौशल से मण्डित कर प्रौढ़, लोकप्रिय एवं व्यापक बनाने का प्रयास किया है। आज उनके भौतिक शरीर अतीत के कालखण्डों में समा गये हैं, किन्तु उनके यशस्वी कृतित्व की सुरभि से आज भी यह धरती सुरभित है। चन्द्रकला-नाटिका के रचयिता आचार्य विश्वनाथ संस्कृत साहित्य के इतिहास में सुप्रसिद्ध आल‌ङ्कारिक कवि हैं। आप स्वयम् ‘नाट्यवेद-दीक्षागुरु हैं, अतएव आपकी प्रकृत कृति में नाट्यशास्त्रीय समस्त लक्षणों का समावेश है। जिस प्रकार भास के ‘स्वप्नवासवदत्तम्ः कालिदास के ‘मालविकाग्निमित्र’ तथा श्रीहर्ष के रत्नावली’ प्रणयकथाप्रधान है उसी प्रकार यह नाटिका भी प्रणयकथाप्रधान है। इस नाटिका का कथानक यद्यपि कविकल्पित है. किन्तु पूर्वोक्त कवियों के नाट्यग्रन्थों की घटनाओं से इसमें पर्याप्त सादृश्य विद्यमान है। इस नाटिका में स्त्री पात्रों का आधिक्य है। भरत, कोहल एवं धनञ्जय के अनुसार ही नाटिका में श्रृंगार रस के साथ-साथ संगीत आदि कलात्मक तत्त्वों का एकीकरण किया गया है। लक्षणग्रन्थों की श्रृङ्खला में विश्वनाथ की कृति साहित्यदर्पण का जिस प्रकार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है उसी प्रकार संस्कृत के नाट्यग्रन्थों की श्रृङ्खला में चन्द्रकला-नाटिका का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।

इस नाटिका का पठन-पाठन सुलभ हो सके, इस हेतु आधिकारिक विद्वानों द्वारा इस नाटिका की अनेकों व्याख्याएँ प्रस्तुत की जाती रही हैं। समय परिवर्तनशील है। समयानुसार विभिन्न टीकाओं में भी परिवर्तन अपरिहार्य हो जाता है। आजकल संस्कृत व्याख्या के साथ अन्यय, प्रसङ्ग, शब्दार्थ, भावार्थ इत्यादि विषयों की अपरिहार्य उपयोगिता स्वयमेव सिद्ध है, क्योंकि ज्ञानार्जन एवं परीक्षार्णव को पार करने के लिए इनका होना अति आवश्यक है। अपने विद्याव्यवसाय की प्रगति में ही मुझे ऐसा आभास हुआ कि समसामयिक उपयुक्त सभी विषयों का एकत्र समावेश होना चाहिए। इस हेतु माँ शारदे की असीम अनुकम्पा प्राप्त हुई एवं मेरी लेखनी इस ओर अग्रसर हुई फलस्वरूप प्रस्तुत ‘सरस्वती नाम की संस्कृत-हिन्दी-व्याख्योपेत चन्द्रकला नाटिका आप सहृदय विद्वान् एवं जिज्ञासु छात्रों के समक्ष वर्तमान स्वरूप में उपस्थित हो गयी है।

इस टीका में प्रत्येक श्लोक का प्रसङ्ग, अन्वय, शब्दार्थ संस्कृत व्याख्या, हिन्दी अनुवाद, भावार्थ आदि उन सभी चीजों को एकत्रित कर दिया गया है जिनकी कि परीक्षार्थियों को आवश्यकता रहती है और जो कि उनके लिए आवश्यक है। इसी प्रकार गद्यभागों की व्याख्या भी शब्दार्थ के साथ ही की गई है। इस टीका में यथावसर टिप्पणी भी दी गई है। आचार्य विश्वनाथ का जीवन परिचय व उनके कृतियों का भी उल्लेख किया गया है। चन्द्रकला- नाटिका की साहित्यिक समीक्षा भी इस टीका में प्रस्तुत की गई है। जहाँ तक लेखक को ज्ञात है कि इस प्रकार की टीका जिसमें कि एकत्र उन सभी विषयों का समावेश हो, जो समसामयिक दृष्टि से परिष्कृत संस्कृत के विद्यार्थियों के साथ-साथ इससे भिन्त्र जो सामान्यतया संस्कृत के जिज्ञासु छात्र हैं, उन सभी के लिए उपयोगी हो ऐसी अनुपलब्ध ही रही है। इस अभाव की पूर्ति हो, यही ‘सरस्वती’ टीकाकार की अभिलाषा है। इस संस्करण से यदि नीरक्षीरविवेकी विद्वानों एवं जिज्ञासु छात्रों को कुछ भी लाभ एवं संतोष की प्राप्ति हुई तो हम इस परिश्रम को सफल समझेंगे।

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