Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.

Geeta Madhurya (गीता माधुर्य)

15.00

Author Swami Ramsukhdas
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 160
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0167
Other Code - 388

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

गीता माधुर्य (Geeta Madhurya) श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय ज्ञानगरिमाकी अभिव्यंजिका अमूल्यनिधि है। भगवान् कृष्णके मुखारविन्दसे निःसृत यह गीता सारस्वतरससारसरोवरसमुद्भूत सुमधुर सद्भाव है। किं वा अखण्ड ज्ञानपारावारप्रसूता लौकिक प्रभाभासुर दिव्यालोक है। किं वा इस भीषण भवाटवीमें अन्तहीन यात्राके पथिक यायावर प्राणीके लिये यह अनुपम मधुर पाथेय है। ज्ञानभाण्डागार उपनिषदोंका यह सारसर्वस्व है। प्रस्थानत्रयीमें प्रतिष्ठापित यह गीता मननपथमानीयमान होकर भग्नावरणचिद्विशिष्ट वेद्यान्तरसम्पर्कशून्य अपूर्व आनन्दोपलब्धिकी साधिका है। यह मानसिक मलापनयनपुरःसर मनको शिवसंकल्पापादिका है। कर्म, अकर्म और विकर्मकी व्याख्या करनेवाली यह गीता चित्तको आह्लादित करती है। नैराश्य निहारको दूर कर कर्मवादका उपदेश देती है।

इसकी महनीयता इसी बातसे व्यक्त होती है कि जितनी व्याख्या गीताकी हुई है उतनी व्याख्या अन्य किसी ग्रन्थकी अद्यावधि नहीं हुई है। यह विश्वविश्रुत भारतीय संस्कृतिकी अक्षय्य भाण्डागार है। तत्त्वबुभुत्सुओंके लिये कल्याणमार्गोपदेशिका गीता सर्वत्र समादृत है।

गीताकी अनेक व्याख्याएँ हैं, किन्तु उन सबमें श्रद्धेय स्वामी रामसुखदासजी महाराजद्वारा लिखित साधक-संजीवनी व्याख्याका अपना एक विशिष्ट स्थान है। गीताके गंभीर हार्दको व्यक्त करनेवाली यह व्याख्या गूढ़-से-गूढ़ भावको अति सरलतासे व्यक्त करती है। गीताके रहस्यके जिज्ञासुके लिये आवश्यक है कि वह साधक-संजीवनीका अध्ययन अवश्य करें।

स्वामी रामसुखदासजी महाराज एक विलक्षण सन्त हैं। वैषयिक सम्पर्कशून्य आपने गीताको आत्मसात् कर लिया है। मानवमात्रके कल्याणके लिये इन्होंने ‘गीता- माधुर्य’ नामक पुस्तककी रचना की है। यह पुस्तक प्रश्नोत्तर-प्रणालीमें लिखी गयी है। प्रश्नोत्तर-प्रणालीमें पुस्तक लिखनेकी परम्परा बहुत पुरानी है। व्याकरणशास्त्रके महान् आचार्य महर्षि पतंजलिने अष्टाध्यायीके ऊपर जो महाभाष्य लिखा है वह प्रश्नोत्तर- प्रणालीमें ही लिखा। नवानिक महाभाष्यका आरम्भ करते हुए वे लिखते हैं-

अथ शब्दानुशासनम्। केषां शब्दानाम्।

वैदिकानां लौकिकानाञ्च।

अथ शब्दानुशासनस्य कानि प्रयोजनानि !

रक्षोहालध्वसन्देहाः प्रयोजनानि ।

इसी प्रकार सरल शब्दावलीमें आठों अध्यायोंकी अष्टाध्यायीकी व्याख्या पतंजलिद्वारा प्रश्नोत्तर-प्रणालीमें की गयी है, जो बहुत ही उपयोगी है। स्वामीजीने भी इस पुरातन प्रणालीके आधारपर गीता-माधुर्यको प्रश्नोत्तर-प्रणालीमें लिखा है। गीताके प्रत्येक श्लोकके सम्यक्-अवबोधके लिये उसमें प्रश्न तथा उसके उत्तरकी परिकल्पना अपनेमें एक अपूर्व बात है। प्रश्नोत्तरके माध्यमसे गीताके रहस्यको समझनेमें सरलता होती है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। गीता- माधुर्यके द्वारा तत्त्व जिज्ञासुको जिस आनन्दकी उपलब्धि होती है वह तो स्वसंवेद्य ही है। गीता-माधुर्यके अनेक संस्करण तथा विभिन्न भाषाओंमें इसके अनुवादके द्वारा यह बात सम्पुष्ट होती है। उदाहरणार्थ पठनीय है अधोलिखित एक लघु अंश-गीताके तीसरे अध्यायके ३६वें श्लोकमें अर्जुनने पूछा कि भगवन् । मनुष्य न चाहता हुआ बलपूर्वक लगाये हुएकी भाँति किसकी प्रेरणासे पापका आचरण करता है ?

भगवान् बोले- रजोगुणसे उत्पन्न कामको ही तू पाप करानेवाला समझ। यह काम कभी तृप्त होनेवाला नहीं है। यह महापापी है। इसे ही तू वैरी समझ।

अर्जुन-महापापी काम क्या करता है?

भगवान् – धुआँ जैसे अग्निको, मल जैसे दर्पणको और जेर जैसे गर्भको ढक लेता है वैसे ही यह काम मनुष्यके विवेकको ढक लेता है और उससे अनभीष्ट कार्य कराता है।

अर्जुन-यह काम रहता कहाँ है ?

भगवान्-काम इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि इन तीन स्थानोंमें रहता है। यह देहाभिमानी मनुष्यके ज्ञानको ढककर उसे मोहित करता है।

अर्जुन-उस कामका नाश कैसे किया जाय ?

भगवान्- हे अर्जुन! तू सबसे पहले इन्द्रियोंको वशमें करके इस ज्ञान- विज्ञानको ढकनेवाले कामको मार डाल।

इस प्रकार प्रश्नोत्तरात्मक यह गीताका व्याख्यान सर्वजनोपयोगी है। ऐसा विलक्षण कार्य करनेवाले स्वामी रामसुखदासजी महाराजके हम सब कृतज्ञ हैं। जिन्होंने ‘गीता-माधुर्य’ नामक पुस्तक लिखकर सबका महान् उपकार किया है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Geeta Madhurya (गीता माधुर्य)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×