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Hanumad Rahasyam (हनुमद् रहस्यम्)

127.00

Author Acharya Pt. Shivdatt Mishr
Publisher Savitri Thakur Prakashan, Varanasi
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2021
ISBN -
Pages 351
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0167
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Description

हनुमद् रहस्यम् (Hanumad Rahasyam) इस पुस्तक का नाम है : ‘हनुमद्-रहस्यम्’। नाम से ही प्रायः विषय का स्पष्टीकरण हो जाता है। अर्थात् हनुमद् = भक्तराज हनुमान्जी की प्रसन्नता केलिए, उनके रहस्य = गोपनीय विषय-ध्यान, उपासना-सम्बन्धी पूजा-अर्चा अनुष्ठान-विधान एवं चरित्र-चित्रण का ज्ञान कराने वाली पुस्तक।

वज्रदेहं पुत्रवरसुमाकान्तस्तदाऽब्रवीत्।
एकादशो महारुद्रस्तव पुत्रो भविष्यति।। – नहज्यो०, हनुम० उ०

पवनात्मा बुधैर्देव ईशान इतिवंत्यत।
ईशानस्य जगत्कर्तुर्देवस्य परम त्मनः।।
शिवा देवी बुधैरुक्ता पुत्रश्चास्य मनोजवः।
चराऽचराणां भूतानां सर्वेषां सर्वकामदः ।। – लिङ्गपुराण, उत्तर भाग, अ० १३

उपर्युक्त श्लोक के अनुसार रामदूत हनुमान्जी को जब कि रुद्रावतार माना गया है, फिर उनके विषय में कुछ लिखना मानो दीपक के द्वारा सूर्य का दर्शन कराना है। तथापि अपनी बुद्धि के अनुसार जनता जनार्दन की जानकारी के लिए कुछ लिखना आवश्यक है।

हनुमत् जीवन-चरित एक समय ऋष्यमूक पर्वत पर, केसरी नामक वानर-राज की सती-साध्वी अंजनी (अंजना) नाम की भार्या ने पुत्र-प्राप्ति के लिए आशुतोष भगवान् शंकर की उग्र तपस्या सात हजार वर्ष पर्यन्त की। उसकी तपस्या के फलस्वरूप भगवान् सदाशिव ने सन्तुष्ट होकर उसे वरदान माँगने के लिए कहा। वरस्वरूप में पुत्र प्राप्ति के लिए शंकरजी से उसने कहा। भगवान् शिव ने इस प्रकार कहा-हे अंजने ! हाथ फैलाकर मेरे ध्यान में मग्न हो, आँख बन्द कर खड़ी रहो तुम्हारी अंजली में पवनदेव द्वारा प्रसाद रखकर अन्तर्ध्यान होने पर उस प्रसाद के खाने पर निश्चय ही एकादश रुद्रावतारस्वरूप परम तेजस्वी तुम्हें पुत्ररत्न प्राप्त होगा। इस प्रकार कहकर भगवान् सदाशिव वहीं अन्तर्ध्यान हो गये और अंजनी उसी स्थान पर किंकर्तव्यविमूढ़ हो खड़ी रहीं। इस बीच चक्रवर्ती राजा दशरथ के यज्ञ में कैकेयी के हाथ से एक चील पिण्ड लेकर आकाशमार्ग में उड़ गयी। उस समय भयंकर आँधी-तुफान से वह पिण्ड चील के मुख से छूटकर वायु-द्वारा अंजनी की पसारी हुई अंजली में गिरा। तत्क्षण उस पिण्ड को अंजनी ने खा लिया। जिसके फलस्वरूप नव मास व्यतीत होने पर अंजनी के गर्भ से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार की मंगलमय बेला में मौंजी, मेखला, कौपीन, यज्ञोपवीत एवं कानों में कुण्डल धारण किये हुए मूँगे के समांन रक्तवर्ण वाले मुख एवं पूँछ युक्त वायुपुत्र अत्यन्त बुभुक्षित (भूखे) वानररूप में एकाएक प्रकट हुए।

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