Sampurna Kalash Pratishtha Evam Pujan Vidhi (सम्पूर्ण कलश प्रतिष्ठा एवं पूजनविधिः)
₹46.00
Author | Dr. Devnarayan Sharma |
Publisher | Shri Kashi Vishwanath Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2024 |
ISBN | 978-93-92989-41-4 |
Pages | 88 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0449 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सम्पूर्ण कलश प्रतिष्ठा एवं पूजनविधिः (Kalash Pratishtha Evam Pujan Vidhi) कलश पूजन सभी प्रकार के यजन, पूजन, व्रत, अनुष्ठानादि का एक आवश्यक माङ्गलिक विधान है। हमारी संस्कृति में कलश, हल्दी, दूर्वा, दधि, नारियल, चन्दन आदि को माङ्गलिक द्रव्य माना गया है। कलश के बिना किसी धार्मिक कृत्य की सम्पूर्णता नहीं होती। यही कारण है कि देव-पूजन के क्रम में ‘गौरी-गणेश’ के पूजनोपरान्त कलशस्थापन किया जाता है। देवताओं तथा असुरों द्वारा मिलकर किये गये समुद्रमन्थन से उत्पन्न चतुर्दशरत्नों में अमृतकलश भी एक रत्न था। पूजनविधि में प्रयुक्त कलश भी उसी अमृतकलश का प्रतीक है। इस कलश में सभी पवित्र तीर्थों, नदियों, समुद्र आदि का आवाहन एवं पूजन किया जाता है। कहा गया है कि कलश के मुख में भगवान् विष्णु, कण्ठदेश में रुद्र तथा मूलभाग में ब्रह्मा तथा मध्यभाग में सभी समुद्र, सप्तद्वीपा वसुन्धरा, गायत्री, सावित्री का निवास होता है।
कलश में ही ऋग्वेद, यजुर्वेद, साम तथा अथर्ववेद अपने अङ्गों सहित विराजमान रहते हैं। जल के अधिष्ठातृ देव भगवान् वरुण हैं, अतः कलश में भगवान् वरुण का आवाहन एवं पूजन किया जाता है। श्रेष्ठता की दृष्टि से अवरोही क्रम में स्वर्ण, रजत, ताम्र तथा मृण्मय (मिट्टी) कलशों में अपनी सम्पन्नता के आधार पर किसी का भी चयन किया जा सकता है। पुस्तक में यथासम्भव वैदिक मन्त्रों के साथ पौराणिक मन्त्रों का भी उल्लेख किया गया है ताकि विप्रों के लिए मन्त्रप्रयोग सुकर हो। अपनी सुविधानुसार ब्राह्मण या तो दोनों या केवल पौराणिक मंत्र का प्रयोग कर यह कार्य सम्पन्न कर सकते हैं।
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