Mimansa Shlok Vartik (मीमांसाश्लोकवार्तिक)
₹840.00
Author | Dr. Shyamsundar Sharma |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2002 |
ISBN | 81-87415-34-7 |
Pages | 616 |
Cover | Hard Cover |
Size | 19 x 3 x 26 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0122 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मीमांसाश्लोकवार्तिक (Mimansa Shlok Vartik) मीमांसा शब्द पूजार्थक मान धातु से सन् प्रत्यय तथा तदनुगुण कार्यलाभ कर समुदाय वृत्ति द्वारा पूजित विचारार्धक सिद्ध होता है। यहाँ पूजा शब्द का तात्पर्य उत्तमोत्तम साधन सुख आदि की प्राप्ति के विषय में निर्धान्त सम्पादन द्वारा सार्थक्य भाव को प्राप्त होना है।
मीमांसा दर्शन का उद्देश्य
पूर्वमीमांसा दर्शन का साक्षात् उद्देश्य स्वतः प्रमाणभूत सन्दिग्ध वेदवाक्यों के तात्पर्यनिर्णय द्वारा वाक्यार्थ का निर्णय करना है। शब्द तथा अर्थ की दृष्टि से यह दर्शन अत्यन्त ही विशाल है। यद्यपि इस शास्त्र में मूल रूप से दर्शपूर्णमासाभ्यां स्वर्गकामो यजेत् इत्यादि कर्मविषयक विचार ही प्रकट किये गये हैं तथापि यह दर्शन उन चार पदार्थों का निर्वचन प्रस्तुत करता है, जो कि उन-उन अध्यायों के विषय हैं और वे हैं तत्त्वदर्शन, दार्शनिक सम्मत प्रमाण-प्रमेयों का निर्वचन, यज्ञानुष्ठान का निर्धारण तथा शाब्दबोधानुपयोगी न्यायों का प्रदर्शन। इन चारो में से प्रथमतः पठित त्तत्त्वदर्शन और प्रमाण-प्रमेय निर्वचन – ये दोनों ही मीमांसा शास्त्र के प्रथमाध्यायस्थ प्रथम पाद के विषय हैं, जिन्हें कि सूत्ररूप से कहा गया है। सूत्र शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है- सूचनात् संक्षेपेण बोधनात् सूत्रम्। स्पष्ट है कि सूत्र अनेक अर्थों का अभिधा एवं व्यञ्जना वृत्ति द्वारा बोध कराते हैं। आशय यह है कि भाष्य-वार्त्तिक आदि में जो भी कहे गये हैं वे सभी वास्तव में सूत्र के ही अर्थ हैं।
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