Ram Krishna Vilom Kavyam (रामकृष्णविलोमकाव्यम)
₹25.00
Author | Dr. Kameshwar Nath Mishr |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Hindi |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 28 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0627 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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रामकृष्णविलोमकाव्यम (Ram Krishna Vilom Kavyam) बाग्विलासात्मक कविकर्म काव्य है। कवि लौकिक विषयों का अपनी क्षमता के अनुसार चित्रण करता है। इस चित्रण का अभिनयदर्शन अथवा पठन दर्शक तथा पाठक के हृदय में चमत्कार की सृष्टि करता है। सामाजिक में चमत्कृतिजन्य आनन्द की प्रचुर उत्पत्ति के लिये कवि विभिन्न उपायों का ग्रहण करता है, क्योंकि लोकविषयों को शब्दात्मक करना मात्र ही काव्य नहीं है। चमत्कार अथवा सौन्दर्यविहीन शब्द रचना ही काव्य नहीं। यदि ऐसा होता तो निम्नलिखित छन्द भी काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण होता –
दीर्घपुच्छश्चतुष्पादः ककुद्मान् लम्बकम्बलः।
गोरपत्यं बलीवर्दस्तृणमत्ति मुखेन सः ॥ (सरस्वतीकण्ठाभरण ११४११)
इससे सिद्ध होता है कि लौकिक विषयों को शब्दात्मक स्वरूप देना हो काव्यनहीं है, अपितु उसे काव्य की संज्ञा देने के लिए किसी और पदार्थ की भी अपेक्षा होती है। यह ‘कुछ और अपेक्षित’ पदार्थ विभिन्न लोगों के मन में विभिन्न रूपोंमें आया। समस्त भिन्नताओं के होने पर भी सभी के विचारों में एक समताअवश्य थी और वह थी काव्य की शैलीगत विवेचना। सबने यह स्वीकार किया कि किसी बात को कुछ ऐसे ढङ्ग से प्रस्तुत किया जाय कि उसमें चमत्कार, आनन्द अथवा प्रीति की क्षमता हो । धार्मिक साहित्य में चमत्कार का बीज- संहिताकाल से ही चमत्कार- पूर्ण ढङ्ग से कुछ कहने की परिपाटी चली आ रही है। पुरुषसूक्त में ही “यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः” आदि में यज्ञ से यज्ञ के सम्पादन की बात श्रोता के मन में कौतूहल उत्पन्न कर ही देती है। इसी प्रकार अन्य संहिताओं के अनेक सूक्तों में इस प्रकार का वर्णन मिल सकता है। ब्राह्मण और आरण्यक ग्रन्थ भी इससे अछूते नहीं हैं।
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