Harsh Charitam (हर्षचरितम)
₹153.00
Author | Dr. Bal Govind Jha |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2017 |
ISBN | - |
Pages | 536 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0629 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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हर्षचरितम (Harsh Charitam) संस्कृत-साहित्य का काव्यात्मक वैभव अनादि काल से विपुल एबम् समृद्ध रहा है। काव्य की प्रत्येक बिधा में अति प्राचीन काल से काव्यात्मक मर्जनाएँ होती रही हैं। बाणभट्ट जैसे यशस्वी कबि द्वारा प्रणीत ‘हर्षचरित’ या ‘कादम्बरी’ जैसे उत्कृष्ट गद्य काव्यों का अवलोकन करने के पश्चात् संस्कृत- गच्चसाहित्य के विकासमान स्वरूप के प्रति जिज्ञासा एवम् कौतूहल का प्राकटप चूंकि नितान्त स्वाभाविक है इसलिए सर्वप्रथम संस्कृत-गद्यसाहित्य के कमिक बिकास का ही पर्यालोचन समुचित है।
संस्कृत गद्य का उद्भव वैदिक काल में हो हो चुका था। वैदिक संहितामों से लेकर बाज तक संस्कृत गद्य साहित्य विकास के अनेक सोपानों को तय कर चुका है। कृष्ण बजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता में जिस गद्य के दर्शन होते हैं बही संस्कृत गद्य का प्रारम्भिक स्वरूप है। उसी संहिता में तथा उसी कृष्ण यजुर्वेद को काठक, मैत्रायणो आदि संहिताओं में भी गद्य का प्रयोग प्रायः उतने ही परिमाण में हुआ है जिलने परिमाण में पद्य का प्रयोग हुआ है। गश्च एवम् पद्य मिश्रण के फलस्वरूप ही कृष्ण यजुर्वेद का कृष्णत्व उपपन्न होता है। इसी प्रकार अपर्ववेद का षष्ठ भाग भी गद्य में ही निबद्ध है। कालान्तर में ब्राह्मण, नारण्यक एबम् उपनिषद् मादि वैदिक वाङ्मय में गद्य का ही प्रचुरतया तथा प्रधानतया प्रयोग किया गया है। संहिता काल में गद्य का जो स्वरूप था वह ब्राह्मणकाल एवम् आरण्यक काल के आते-आते अत्यधिक परिष्कृत हो गया तथा उपनिषत्काल में तो उसके रमणीय उत्कर्ष का भी साक्षात्कार होने लगा। वस्तुतः संहिता काल में प्रयुक्त होने बाले गद्य का स्वरूप सामान्य या। दैनिक व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा का ही उसमें प्रयोग किया जाता था किन्तु कालान्तर में गद्य के प्रति अपनी विशिष्ट रुचि का प्रदर्शन करते हुए बिद्वानों ने अबान्तर काल में गद्य को परिष्कृत करने का अभ्यर्हणीय एवं सफल प्रयास किया। यही कारण है कि संहिता काल में प्रयुक्त गद्य की अपेक्षा बाह्मण-आरण्यक कालीन गद्य तथा उसकी भी अपेक्षा उपनिषदों में प्रयुक्त गद्य के स्वरूप का अधिकाधिक परिष्कार अनुभवगम्य होता है।
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