Samved (सामवेद)
₹510.00
Author | Dr. Ashok Kumar Gaud |
Publisher | Rupesh Thakur Prasad Prakashan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | - |
ISBN | 978-93-85596-971 |
Pages | 264 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0117 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सामवेद (Samved) वेद संसार के सबसे प्राचीन ग्रन्थ होने के कारण धमों के आदिस्रोत माने जाते हैं। वेद ज्ञान-विज्ञान के भण्डार हैं। सभी सत्य विधाओं का मूल वेदों में प्राप्त होता है। वेद के ज्ञान द्वारा मनुष्य को जीवन में महान् लाभ प्राप्त होता है। इसके द्वारा मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करता है।
वेद शब्द ज्ञानार्थक विद् धातु से घञ् प्रत्यय करने पर बनता है। ‘विद् ज्ञाने’ अदाति धातु है। घञ् के घ् और व् का लोप हो जाता है। केवल ‘अ’ शेष रहता है। इसका अर्थ है- ज्ञान। अतः ‘वेद’ शब्द का अभिप्राय है- ज्ञान की राशि अथवा ज्ञान का संग्रह-ग्रन्थ। वेदों की संख्या चार है-१. ऋग्वेद, २. यजुर्वेद, ३. सामवेद तथा ४. अथर्ववेद। ऋग्वेद में देवों के गुणों का उल्लेख किया गया है। यजुर्वेद में विविध प्रकार के यज्ञों को किस विधि से करना चाहिए- इसके विषय में बतलाया गया है। सामवेद में विविध प्रकार के मन्त्रों का गान किस प्रकार होना चाहिए, इसके विषय में विशेष रूप से बतलाया गया है। अथर्ववेद में ब्रह्मज्ञान के बारे बतलाया गया है। वेदत्रयी और वेदचतुष्टयी ‘वेद-त्रयी’ का अर्थ है-पद्य, गद्य तथा गायन। यह अनेकों जगहों पर प्रयोग हुआ है। पादबद्धव्यवस्था वाले मन्त्र ऋग्वेद, गद्यभाग यजुर्वेद तथा पादबद्ध मन्त्रों का गायन सामवेद है। यही वेदत्रयी है। अथर्ववेद मन्त्रों के पादबद्ध होने के कारण उनका समावेश ऋग्वेद में ही हो जाता है। वेदग्रन्थों के चार होने के बावजूद भी उनका समाविष्ट (१) पद्य, (२) गद्य तथा (३) गायन- इन तीन हिस्सों में हो सकता है। अतएव ‘वेद-त्रयी’ तथा ‘वेद-चतुष्टयी’ के मन्त्रों की संख्या व अर्थ में कोई अन्तर नहीं है।
वेदत्रयी कहने जाने के कारण अथर्ववेद बाद में बना, यह नहीं समझना चाहिए। इसलिए कि यज्ञों में ‘ब्रह्मा’ अथर्ववेद ही होता है, तथा ‘ब्रह्मा’ की यज्ञ में जरूरत होती ही है, फिर अथर्ववेद बाद में बना यह किस प्रकार से कहा जा सकता है। पद्य, गद्य तथा गायन यह ही वेदत्रयी है।समस्त भाषाओं के वाङ्मय में ये तीन भाग होते हैं। इस बात से यह व्यक्त हो जायेगा कि वेदत्रयी तथा वेदचतुष्टयी में कोई अन्तर नहीं है तथा वेदत्रयी होने के कारण जो लोग यह मानते हैं कि अथर्ववेद पीछे से बना है वे भी यह मान जायेंगे कि उनका यह विचार गलत है। वैदिक संहिताओं में साम-संहिता का अतिविशिष्ट स्थान है। जो मनुष्य साम को जानता है, वही वेद के रहस्य को जानता है- ‘सामानि यो वेद स वेद तत्त्वम्। इसी महत्त्व को भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है- ‘वेदानां सामवेदोऽस्मि ।
चारों वेदों में सामवेद ईश्वर की विभूति है। पद्य, गद्य तथा गान में मन पर ‘गान’ का विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। यह सभी को प्रतीत होगा। यहाँ सामगान का विभूतिमत्त्व है। भाषा के तीन प्रकार में गायन का मन पर विशेष प्रकार के प्रभाव पड़ता है। सामान्य मानव के चित्त पर गान के हर्ष का प्रभाव अधिक पड़ता है। अस्वस्थ व्यक्ति के चित्त पर भी गान का असर होता है, अपेक्षाकृत वह जल्दी ठीक हो जाता है।
यदि दूध देने वाली गायों को दुहते वक्त गाना सुनाया जाये तो वह अधिक दूध देती है। इस तरह गाने का विशेष प्रभाव होता है। इस सामगान की पद्धति में तथा आजकल की पद्धति में जरा-सा अन्तर है, उसका भी विचार यहाँ अत्यन्त आवश्यक है। सामगान में स्वर को उच्च आलाप से आरम्भ करके उसे धीरे-धीरे नीचे आलाप पर ले आया जाता है। उसके कारण मन को शान्ति की अनुभूति होती है तथा आवेश में आया हुआ चित्त सामगान के प्रभाव से शान्त हो जाता है। इस तरह सामगान के प्रभाव से शान्ति की अनुभूति हो सकती है। गीतियुक्त मन्त्र को साम कहते हैं। साम के लिये यह आवश्यक है कि वह गीतियुक्त हो। ऋग्वेद के मन्त्र को जय विशेष गान-पद्धति से गाया जाता है, तब उन्हें ‘साम’ कहा जाता है। गान के रूप में प्रस्तुत ऋग्वेद ही साम है। ऋग्वेद और सामवेद एक-दूसरे पर आश्रित है, इसलिये इन दोनों वेदों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। ऋग्वेद और सामवेद एक-दूसरे के पूरक हैं। ऋचा-गान ही साम है। गा-गाकर बोलने पर ऋचा ही साम कहलाती है।
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