Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 16 (संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-सोलह ज्योतिषशास्त्र खण्ड)
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Author | Acharya Baldev Upadhyaya |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 1st edition, 2012 |
ISBN | - |
Pages | 382 |
Cover | Hard Cover |
Size | 23 x 2 x 15 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0015 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-सोलह ज्योतिषशास्त्र खण्ड (Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 16) ज्योतिष शास्त्र का उत्स वैदिक संहिताओं में प्राप्त होता है। भास्कराचार्य ने इसकी श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए कहा है कि-
शब्दशास्त्रं मुखं ज्यौतिषं चक्षुषी श्रोतमुक्तं निरुक्तं च कल्पः करौ।
या तु शिक्षास्य वेदस्य सा नासिक पादपदमद्वयं छन्द आद्यैर्बुधः ।।
वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र को नेत्र स्थान प्राप्त है। आचार्य वराहमिहिर के बृहत्संहिता के अनुसार ज्योतिष शास्त्र के प्रमुख तीन स्कन्ध हैं- १. सिद्धान्त २. होरा ३. संहिता। सिद्धान्त स्कन्ध में त्रुटिकाल से लेकर प्रलय तक की गणना की जाती है। कितने दिनों का महीना तथा कितने महीनों का एक वर्ष होता है आदि का विवेचन सिद्धान्त ग्रन्थों में किया गया। ग्रहलाघव जैसे ग्रन्थों का प्रणयन ग्रह गणित हेतु किया गया। होरा स्कन्ध को जातक अथवा फलित नाम से भी अभिहित किया जाता है। इसके द्वारा जातक के जीवन सम्बन्धी फल कथन किया जाता है। होरा स्कन्ध के मुख्यतः पाँच भेद हैं-जातक, ताजिक, मुहूर्त, प्रश्न तथा संहिता। बृहत्संहिताकार आचार्य वराहमिहिर के अनुसार गणित एवं फलित के मिश्रित रुप को संहिता ज्योतिष कहा गया।
वेदांग ज्योतिष के प्रणेता लगध, वसिष्ठ, सौर, पौलिश, रोमक सिद्धान्त से होते हुए सूर्य सिद्धान्त तक आकर यह शास्त्र अत्यन्त स्पष्ट हो गया। आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त भास्कराचार्य प्रभृति प्रमुख आचार्यों ने इसे विस्तार दिया।
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