Kadambari Shuknasopdesh (कादम्बरी शुकनासोपदेश)
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Author | Pt. Parmeshwardeen Pandya |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2024 |
ISBN | 81-218-0155-5 |
Pages | 96 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0520 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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कादम्बरी शुकनासोपदेश (Kadambari Shuknasopdesh) संस्कृत वाङ्मय में महाकवि बाणभट्ट की ‘फादम्बरी’ का विशिष्ट स्थान है। गद्य साहित्य में इसकी समता का अन्य ग्रन्थ नहीं है। गद्य काव्य होने पर भी इसकी क्लिष्टता सर्व-विदित है। कादम्बरी के अन्तर्गत ‘कथा-मुख’, ‘शुकनासोपदेश’ तथा महाश्वेतावृत्तान्त अंश सु-प्रसिद्ध हैं। इनमें भी ‘शुकनासोपदेश’ अत्यन्त शिक्षा-प्रद है। उसके महत्व को देखकर ही अधिकांश विश्वविद्यालयों ने, अपनी विभिन्न संस्कृत-परीक्षाओं में उसे पाठ्यग्रन्थ के रूप में रखा है।
यद्यपि ‘कादम्बरी’ पाण्डित्य की कसौटी है, तथापि छात्रों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर ‘शुकनासोपदेश’ की प्रस्तुत सुधा-संस्कृत-हिन्दी-टीका करने का प्रयास एक प्रकार की धृष्टता ही है। प्रायः संस्कृतेतर विश्वविद्यालयों के छात्र या तो संस्कृत व्याख्या से अनभिज्ञ रह जाते हैं, अथवा उसके समानान्तर हिन्दी शब्दार्थ के लिए उन्हें इतस्ततः भटकना पड़ता है। सुधा टीका में संस्कृत-व्याख्या के साथ ही प्रत्येक शब्द का हिन्दी अर्थ भी वहीं पर दे दिया गया है। व्याकरण-ज्ञान एवं विशिष्ट ज्ञातव्य को ‘मूल’ के प्रत्येक अंश के साथ ही टिप्पणी में स्पष्ट किया गया है। संस्कृत में सरलार्थ के साथ ही हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है। आवश्यकता को देखते हुए प्रमुख अलंकार एवं लक्षण-निर्देश भी यचास्थान दिये गये हैं ।
इस प्रकार मूलांश की व्याख्या में प्रत्येक बात को समझाने का प्रयास किया गया है। सम्भवतः इमसे संस्कृत तया तदितर विश्व विद्यालयों के छात्रों को पर्याप्त सुगमता होगी। ‘किरातार्जुनीयम्’ ( ४-८) तथा ‘रत्नावली’ पर की गयी सुधा-टीका इससे पूर्व छात्र-वर्ग में पहुंच ही चुकी है। विश्वास है कि ‘सुधा टीका युक्त शुकनासोपदेश’ भी अध्येतूवर्ग की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सफल होगा। इसके लेखन-कार्य में जिन महानुभावों की कृतियों अथवा सत्परामशों से यत्किञ्चित् सहयोग मिला है, हम हृदय से उन सबके आभरी हैं। अन्त में हम उन सभी सहृदय-पाठकों से उनके सुझावों की अपेक्षा रखेंगे जिससे ‘शुकनासोपदेश’ को अधिकाधिक छात्रोपयोगी बनाया जा सके।
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