Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-15%

Laghu Siddhant Kaumudi (लघुसिद्धान्तकौमुदी)

463.00

Author Govind Prasad Sharma
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2024
ISBN 978-93-81484-45-5
Pages 1216
Cover Paper Back
Size 14 x 6 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code SUR0033
Other Dispatched in 1-3 days

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

लघुसिद्धान्तकौमुदी (Laghu Siddhant Kaumudi) भट्टोजिदीक्षित के द्वारा ग्रथित वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी को वरदराजाचार्य के समय में बहुत ख्याति मिल चुकी थी। वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी प्रौढ़ एवं प्रत्युत्पन्न मति वाले जिज्ञासु छात्र ही अध्ययन कर सकते हैं क्योंकि भट्टोजिदीक्षित जी ने पाणिनीयाष्टाध्यायी के सभी सूत्रों के लेकर इस कौमुदी का निर्माण किया है जो वेद, धर्मशास्त्र, पुराण आदि ग्रन्थों के प्रायः सभी शब्दों को सिद्धि सम्भव है। ग्रन्थ के अन्त में स्वर और वैदिक प्रक्रिया को जोड़कर अत्यन्त विशालतम कलेवर से परिपूर्ण इस ग्रन्थ के द्वारा लौकिक एवं वैदिक दोनों शब्दों का साधुत्वज्ञान किया जा सकता है। प्रारम्भिकछात्रों के लिए वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी में प्रवेश कर पाना बहुत ही कठिन है। इसी विषय को हृदयंगम करके वरदराजाचार्य से लघुसिद्धान्तकौमुदी की रचना की। इसमें केवल १२७५ सूत्रों को ही लेकर सरल से सरल बनाने का प्रयत्न किया। प्रकरणों का भी व्यत्यास किया।

वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी का प्रकरणक्रम है- संज्ञाप्रकरण, पञ्चसन्धि, प‌ड्लिङ्ग, अव्यय, स्त्रीप्रत्यय, कारक, समास, तद्धित, तिङन्त, क्दन्त और अन्त में वैदिकी प्रक्रिया और स्वरप्रक्रिया। लघुसिद्धान्तकौमुदी में कुछ परिवर्तन के साथ संज्ञाप्रकरण, पञ्चसन्धि, ष‌ड्लिङ्ग, अव्यय, तिङन्त, कृदन्त, कारक, समास, तद्धित और अन्त में स्त्रीप्रत्यय प्रकरण है। पहले संज्ञाओं का ज्ञान, तत्पश्चात् सन्धिज्ञान, फिर सुवन्तप्रक्रिया के पश्चात् धातुप्रकरण होना हो युक्तिसंगत लगता है क्योंकि कृप्रत्यय धातुओं से ही होते हैं और कृदन्त शब्दों में प्रातिपदिकत्व के आ जाने के बाद ही तद्धित प्रत्यय हो सकते हैं। कृत् और तद्धित प्रत्ययों के आधार पर प्रायः स्त्रीप्रत्यय होते हैं। कारकप्रकरण में भी अकथितं च और कर्तृकरणयोस्तृतीया, उक्तानुक्तव्यवस्था आदि भी धातु, तिङ् और कृत् के बाद होने का समर्थन करते हैं। अतः चीच में धातुप्रकरण, तदनन्तर कृत्प्रकरण, तद्नु कारक समास तद्धित प्रकरण और सर्वान्त में स्त्रीप्रत्ययों का प्रकरण सहेतुक है। यही क्रम वरदराजाचार्य जी ने लघुसिद्धान्तकौमुदी में अपनाया है।

आचार्य ने पहले लघुसिद्धान्तकौमुदी बना कर अपने गुरु भ‌ट्टोजिदीक्षित को दिखाया तो वे बहुत प्रसन्न हुए। तत्पश्चात् उन्होंने 2315 सूत्रों को लेकर मध्यसिद्धान्तकौमुदी बनाई तो इससे भ‌ट्टोजिदीक्षित को प्रसत्रता नहीं हुई, क्योंकि यह कौमुदी वैदिकी प्रक्रिया को छोड़कर शेष प्रकरणों से वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी की प्रतिस्पर्धिनी लग रही थी। आज मध्यसिद्धान्तकौमुदी का पठन-पाठन लघुसिद्धान्तकौमुदी और वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी की अपेक्षा कम होती है। व्याकरण का सम्पूर्णज्ञान वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी के बाद हो राम्भव है। उसमें वेश के लिए लघुसिद्धान्तकौमुदी का अध्ययन होना आवश्यक है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Laghu Siddhant Kaumudi (लघुसिद्धान्तकौमुदी)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×