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Prakrit Vimarsha (प्राकृत विमर्श)

940.00

Author Prof. Hari Shankar Pandey
Publisher Prachya Vidya Bhawan
Language Hindi
Edition 2017
ISBN 978-81-930275-4-7
Pages 306
Cover Hard Cover
Size 14 x 3 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code PVB0053
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Description

प्राकृत विमर्श (Prakrit Vimarsha) प्राकृत भाषा निसर्ग रमणीय भाषा है। यह सामान्य जन का सहजवचन व्यवहार है। ई०पूर्व ५०० से १००० ई० तक इस भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना हुई। भगवान महावीर के उपदेश की भाषा प्राकृत है। इसी का प्राचीन रूप पालि है जिसमें भगवान बुद्ध ने उपदेश दिया। प्राकृत भाषा में श्वेताम्बर-दिगम्बर आगम साहित्य, चरितकाव्य, महाकाव्य, स्तोत्रकाव्य, खण्डकाव्य, गीतकाव्य, नाटक, सट्टक आदि अनेक विधाएं सम्बर्धित हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में प्राकृत भाषा के विभिन्न पहलुओं का विमर्शन विवेचन एवं शोधात्मक उपन्यास किया गया है। लगभग सत्तरह विषयों पर आधारित शोध निबन्ध अनुस्यूत हैं। प्राच्य विद्या के अध्येताओं के लिए यह ग्रंथ अत्यन्त उपयोगी है। शोध, अनुसन्धान का संवर्धन होगा तथा विद्या के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान होगा।

प्राकृत भाषा सहज निसर्गरमणीय भाषा का वाचक है। प्राकृत शब्द के सहज, अविकल, अनाविल, पवित्र स्वभावगत, निसर्ग आदि अर्थ होते हैं। जो निसर्ग भाषा है, सहजजनों की स्वाभाविक भाषा है, वह प्राकृत है। सहज भाषा अनादिकालीन होती है। प्रत्येक काल में दो भाषाएं होती हैं- प्रथम पढ़े-लिखे लोगों की परिस्कृत भाषा तथा द्वितीय बालक, एवं सामान्य जनों की भाषा जो सहज होती है। जैसे ‘स्टेशन’ पढ़े लिखे लोगों द्वारा उच्चारित होता है, लेकिन सामान्य जन टेशन, टिशन आदि का उच्चारण करते हैं- यही भाषा सहज भाषा है। प्राकृत भाषा है।

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