Daivam (दैवम्)
₹420.00
Author | Prof. Ramesh Chandra Panda |
Publisher | The Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2020 |
ISBN | 978-81-951790-4-6 |
Pages | 199 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0399 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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दैवम् (Daivam) अन्य का नाम “दैव” है। इस शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में पुरुषकारटीका के रचयिता कहते हैं- “दैवमिति (च?) ‘तस्वेदम्’ (४.३.१२०) इति वा, ‘कृते अन्थे’ (४.३.११६) इति वा देवादणि दैवमिति रूपम्। कृतवाद्येव च विरचितशब्देना(ण्यु?) णुपदर्शितः। “(पु.का.पू. ८५) आगे भी टीकाकार का यह वचन है- “यदि पुनर्भत्त्यादिवशात् प्रसिद्धदेवत्वारोपेणैवात्र देवशब्दः प्रवर्तितो भवेत् तदापि विकार इत्यस्यां विवक्षायां ‘देवस्य यबजी’ (वा० इति वार्तिकनात्रि कृते रूपमेतद् भविष्यति।” (पु.का.पू. ८६) उपर्युक्त पट्टियों से “दैव” शब्द की निम्नलिखित तीन व्युत्पत्तियाँ ज्ञात होती है-
(i) देव अणू (देवस्यायमिति विग्रहः)
(ii) देव+अणू (देवेन कृतः रचितः ग्रन्थः)
(iii) देव अञ् ((प्रसिद्ध) देवस्य विकारः)
ये व्युत्पत्तियां बताती है कि प्रकृत ग्रन्थ के प्रणेता ‘देव’ थे। इस बात को पुष्ट करती है दैवग्रन्थ की अन्तिम पुष्पिका जो इस प्रकार है – इत्यनेक-विकरणसरुपधातुव्याख्यानं देवनाम्ना विरचितं दैवं समाप्तम्। (पृ. ८५)
‘देव’ ग्रन्थ में २०० श्लोक विद्यमान है। इन श्लोकों को देवकार ‘वृत्तबन्ध’ कहते हैं। उनके मत में वृत्तबन्ध से ही किसी भी विषय को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। धातुपाठ में विद्यमान विभिन्न विकरणयुक्त समानरूपवाले धातुओं को एकत्रित कर श्लोकों के माध्यम से एक ही स्थान पर उनका पाठ करना इस ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य है। धातुओं के विकरण के आधार पर रूप भेद तथा अर्थभेद भी प्रदर्शित किये गये हैं। प्रकृतग्रन्थ में स्थित धातुओं की संख्या ७४५ हैं। धातुओं के अन्तिम वर्ण के आधार पर वर्ण क्रम को आश्रित करते हुए धातुओं का उल्लेख किया गया है।
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