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Sampurna Godan Paddhati (सम्पूर्ण गोदान पद्धतिः)

34.00

Author Dr. Devnarayan Sharma
Publisher Shri Kashi Vishwanath Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2024
ISBN 978-93-92989-50-6
Pages 56
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0451
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Description

सम्पूर्ण गोदान पद्धतिः (Sampurna Godan Paddhati) कलिकाल में दान और भगवत्स्मरण यही दो आत्म-कल्याण तथा भगवत्-प्राप्ति के साधन हैं। धर्म के चार चरण बताये गये हैं- तप (सत्य), यज्ञ, सेवा तथा दान। इन्हीं चार चरणों पर धर्म अवस्थित होता है- सत्युग में धर्म के ये चारों चरण विद्यमान थे। त्रेता युग में सत्य और तप का ह्रास हुआ। धर्म के तीन चरण शेष रह गये – यज्ञ, सेवा तथा दान । द्वापर युग में यज्ञ का ह्रास हुआ। धर्म के दो चरण शेष रह गये – सेवा तथा दान । कलिकाल में धर्म का केवल एक ही चरण अवशिष्ट है, वह है – दान ।

दान का तात्पर्य है- अपने पास जो वस्तु अपनी आवश्यकता से अधिक है, उसका दूसरे लोगों के कल्याण के लिए उत्सर्जन । दान करने से आत्मशुद्धि, धनशुद्धि, पातक विनाश, लक्ष्मी और यश की प्राप्ति, अरिष्टशान्ति, अहंकार से मुक्ति तथा सद्गति की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में दश प्रकार के दान का उल्लेख है- गोदान, हिरण्य (स्वर्ण) भूमि, वस्त्र, अन्न, घृत, गुड़, तिल, रजत (चाँदी) तथा नमक । दशविध दानों में ‘गोदान’ की सर्वाधिक महिमा विभिन्न शास्त्रों, पुराणों में वर्णित है। इसके दो कारण हैं – हमारी सनातन संस्कृति में ‘गौ’ को माँ का स्थान दिया गया है। माता के समान ही गाय अपने दुग्ध, दधि, घृत द्वारा हमारा पोषण करती है। हमें बल तथा ऊर्जा प्रदान करती है। दूसरा कारण यह कि गाय के सभी अङ्गों में देवों का निवास है।

हेमाद्रि तथा भविष्यपुराण में गाय, पृथिवी तथा ज्ञान को अतिदान कहा गया है। ये तीनों ही मनुष्य को नरक से उद्धार करने में सक्षम हैं। हमारी संस्कृति में – गौ, गंगा, गीता, गायत्री तथा गोविन्द (गुरु) ये धर्म के पञ्चप्राण हैं। स्कन्दपुराण, भविष्य पुराण, हारीतस्मृति, महाभारत आदि कई पुराणों एवं धर्मशास्त्रों ‘गाय’ की महिमा का वर्णन उपलब्ध है। भविष्यपुराण में कहा गया है कि — भगवान् सूर्य की दो पुत्रियाँ हैं – गाय तथा पृथ्वी। सभी लोकों के कल्याण तथा यज्ञ की सिद्धि के लिए इनकी उत्पत्ति हुई है। ब्रह्माजी ने एक ही कुल की दो भागों में विभक्त किया – ब्राह्मण तथा गौ । एक कुल में मन्त्रों का निवास है तो दूसरे में यज्ञार्थ हवि का। गायों से ही षडङ्ग वेदों की उत्पत्ति हुई है। गाय के शृङ्ग के मूल में सदैव ब्रह्मा और विष्णु का निवास होता है। सींग के अग्रभाग में सभी तीर्थों, चर एवं स्थावर का वास है। सिर के भध्य में सभी प्राणियों के साथ महादेव निवास करते हैं। ललाट के गरे अग्रभाग में देवी तथा नासिका में षडानन का वास है। गोमूत्र में साक्षात् गङ्गा तथा गोबर में वा यमुना, दूध में सरस्वती तथा दधि में नर्मदा जी विराजती हैं। गाय के उदर में सभी पर्वतों, वन वा समूहों के साथ पृथिवी एवं चारों स्तनों में चारों समुद्रों का निवास है।

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