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Ganapati Rahasyam (गणपतिरहस्यम्)

153.00

Author Ashok Kumar Gaur Shastri
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2020
ISBN -
Pages 512
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0273
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Description

गणपतिरहस्यम् (Ganapati Rahasyam) गणपति का पर्यायवाची गणेश शब्द चुरादिगणीय ‘गण संख्याने’ धातु से ‘अन्’ प्रत्यय करने से ‘गण’ शब्द निष्पन्न होता है। इसी प्रकार अदादिगणीय ‘ईश् ऐश्वर्ये’ घातु में ‘क’ प्रत्यय के समावेश से ‘ईश’ शब्द निष्पन्न होता है। अर्थात् गण और ईश ये दोनों शब्द जब आपस में मिलते हैं तो गणेश शब्द व्युत्पन्न हो जाता है। गणपति से यही बोध होता है कि ये सभी देवताओं के रक्षक और महत्तत्त्व आदि जितने सृष्टितत्त्व हैं उनके यही स्वामी हैं। क्योंकि इस सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति इन्हीं के द्वारा हुई है। सगुण व निर्गुण के स्वामी होने के कारण गणपति ही इस संसार में सबसे श्रेष्ठ और माननीय देवाधिदेव हैं। गणपति में सगुण और निर्गुण दोनों ही तत्त्व एक साथ विद्यमान् है। इसलिये वे निगुर्ण व सगुण हैं, क्योंकि गणपति पूजा एक साकार, परिमित एवं परिच्छिन्न शक्ति का प्रतीक न होकर निर्गुण ब्रह्म उपासना का प्रतीक है।

‘आदौ पूज्यो विनायकः’ इस प्रमाण के आधार पर समस्त शुभ कार्यों के प्रारम्भ में गणपति की अग्रपूजा विशाल हिन्दू जाति में आज भी प्रचलित है। इसका मुख्य कारण यह है कि गणपति समस्त विघ्नों का हरण करते हैं और शुभ मंगल करना इनकी मनोवृत्ति है। ये सदैव दूसरे के हित में लगे रहते हैं, सत्प्रवृत्त, पुण्यात्मा एवं अपने भक्तों के कार्य को यह निर्विघ्न रूप से पूर्ण करते हैं, सबका मंगल करना इनकी विशेषता है। कृतयुग, त्रेता, द्वापर और आज के इस कलिकाल में भी सम्पूर्ण संसार में गणपति की पूजा एवं उपासना निरन्तर होती चली आ रही है। अतः उनसे सम्बन्धित सभी विषयों का समावेश कर आप सभी महानुभावों के समक्ष ‘गणपति-रहस्यम्’ नामक यह पुस्तक प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस पुस्तक में उन सभी विषयों का समावेश है जिसकी आवश्यकता प्रत्येक वैदिक, कर्मकाण्डी एवं गणपति भक्त को पड़ सकती है।

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