Saundarya Lahari (सौन्दर्यलहरी)
₹32.00
Author | Ajay Kumar Uttam |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2002 |
ISBN | 81-87415-29-9 |
Pages | 94 |
Cover | Paper Back |
Size | 12 x 2 x 19 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0110 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
सौन्दर्यलहरी (Saundarya Lahari) सौन्दर्यलहरी एक लघु, किन्तु अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गोविन्द भगवत्पाद के शिष्य शंकर थे, जिनकी ख्याति आदि शङ्कराचार्य के रूप में अधिक है। इस ग्रन्थ के विषय में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कहा जाता है कि एक बार आदि शङ्कराचार्य भगवान् शिव के दर्शन हेतु कैलास पर्वत पर गए। वहीं पर भगवान् शिव ने आचार्य शङ्कर को सौन्दर्यलहरी नामक यह ग्रन्थ प्रदान किया। जब शङ्कराचार्य कैलास पर्वत से वापस आने लगे तो उन्हें मार्ग में ही नन्दी मिल गए तथा ग्रन्थ की प्राप्ति के लिए आचार्य शङ्कर से छीना-झपटी करने लगे। आचार्य को इस ग्रन्थ के मात्र ४१ श्लोक ही हाथ लगे। वापस आकर उन्होंने अपनी स्मरणशक्ति से इस ग्रन्थ को पुनः लिखा तथा प्रचलित किया।
दूसरी किंवदन्ती के अनुसार द्रविड़ शिशु नामक एक सिद्ध महात्मा थे। उन्होंने कैलास पर्वत के पत्थरों में एक स्तोत्र लिखा था। जब आचार्य शङ्कर कैलास की यात्रा पर गए तब उन्होंने उस स्तोत्र को पढ़ा। आचार्य शङ्कर को स्तोत्र पढ़ते देखकर भगवती के संकेत पर उन सिद्ध महात्मा ने उसे मिटाना प्रारम्भ कर दिया, किन्तु आचार्य तब तक प्रारम्भ के ४१ स्तोत्र कण्ठाग्र कर चुके थे। यही ४१ श्लोक ‘आनन्दलहरी’ के नाम से जाने जाते हैं। “सौन्दर्यलहरी” श्रीविंद्या का ग्रन्थ है। इसमें भगवती षोडशी का सांगोपांग वर्णन किया गया है। सम्पूर्ण ग्रन्थ में श्रीविद्या की महिमा, उपासना, मन्त्र, यन्त्र, श्रीचक्र एवं षट्चक्रों का वर्णन किया गया है।
Reviews
There are no reviews yet.