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Shisupalvadh Mahakavyam (शिशुपालवध महाकाव्यम द्वितीयः सर्गः)

27.00

Author Dr. Sharda Chaturvedi
Publisher Chaukhambha Krishnadas Academy
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2000
ISBN -
Pages 100
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0615
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Description

शिशुपालवध महाकाव्यम (Shisupalvadh Mahakavyam) संस्कृत-साहित्य के कतिपय महाकवियों में माघ एवं उनकी रचना शिशुपालवध का अनन्यतम स्थान है। कालगति एवं सम्माजिक विवर्तन की दृष्टि से काव्यरचनाधारा में परिवर्तन अपरिहार्य है। संस्कृत-साहित्य-परिशी- लन में कालिदासोत्तर माघ का अध्ययन ही सहृदयों ने काव्य-कमनीयता की उपलब्धि के लिए अनिवार्य माना है-“मेघे माघे गतं वयः” यह सदुक्ति इस भंगी को अभिव्यक्त कर रही है। माघ के व्यक्तित्व, काव्यकला-प्रेषणीयता का इतना प्रभाव था कि बृहत्त्रयी में अन्तनिहित शिशुपालवध माध के नाम से अभिहित होने लगा।

संस्कृत-साहित्य के महाकवियों का अखण्ड भारत के प्रति अतिशय अनुराग माघ की कृति में भी अक्षुण्ण है। इन्होंने भी अखण्ड-देश-काल की अपरिच्छिनता के प्रेम में अपने स्थानविशेष आदि की सूचना नहीं दी है। भारतीयता के गौरव को गुर्जर आदि के निर्देश से म्लान नहीं करना चाहा।

मेरुतुङ्गाचार्य प्रणीत प्रबन्धचिन्तामणि में उपलब्ध विवरण के अनुसार वैभव-सम्पन्न माध का अन्तिम जीवन दारिद्रय की अनुभूति से में हुई थी। यदि इसे संवत्सर काल माना जाय तो माघ का समय ईसा की दशम शताब्दी मानना पड़ेगा। शकाब्द मानने पर इनका काल ईसा का एका दश शतक मानना होगा। महाकवि माघ को भोजराज समकालिक मानने बाले समीक्षकगण, जिन्होंने स्वीकार किया है कि सरस्वतीकण्ठाभरण में शिशु पालवध से पद्य उद्भुत हैं, अतः महाकवि ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी में विराजमान थे। महामहोपाध्याय हरिदास सिद्धान्तवागीश ने भी शिशुपालवध की भूमिका में इसी मत का समर्थन किया है। प्रस्तुत ग्रंथ शिशुपालवध महाकाव्यम का द्वितीयः सर्गः है।

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